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कविता

होली है तो आज अपरिचित से परिचय कर लो

यह मिट्टी की चतुराई है,
रूप अलग औ रंग अलग,
भाव, विचार, तरंग अलग हैं,
ढाल अलग है ढंग अलग,

आजादी है जिसको चाहो आज उसे वर लो।
होली है तो आज अपरिचित से परिचय कर लो!

निकट हुए तो बनो निकटतर
और निकटतम भी जाओ,
रूढ़ि-रीति के और नीति के
शासन से मत घबराओ,

आज नहीं बरजेगा कोई, मनचाही कर लो।
होली है तो आज मित्र को पलकों में धर लो!

प्रेम चिरंतन मूल जगत का,
वैर-घृणा भूलें क्षण की,
भूल-चूक लेनी-देनी में
सदा सफलता जीवन की,

जो हो गया बिराना उसको फिर अपना कर लो।
होली है तो आज शत्रु को बाहों में भर लो!

होली है तो आज अपरिचित से परिचय कर लो,
होली है तो आज मित्र को पलकों में धर लो,
भूल शूल से भरे वर्ष के वैर-विरोधों को,
होली है तो आज शत्रु को बाहों में भर लो!

होली है तो आज अपरिचित से परिचय कर लो
हरिवंश राय बच्चन
कविता

मैं देश नहीं मिटने दूंगा मैं देश नहीं झुकने दूंगा

सौगंध मुझे इस मिट्टी की, मैं देश नहीं मिटने दूंगा,
मैं देश नहीं मिटने दूंगा, मैं देश नहीं झुकने दूंगा।

मेरी धरती मुझसे पूछ रही, कब मेरा कर्ज़ चुकाओगे,
मेरा अम्बर मुझसे पूछ रहा, कब अपना फर्ज़ निभाओगे
मेरा वचन है भारत माँ को, तेरा शीश नहीं झुकने दूंगा,
सौगंध मुझे इस मिट्टी की, मैं देश नहीं मिटने दूंगा, मैं देश नहीं झुकने दूंगा।

वो लूट रहे हैं सपनों को, मैं चैन से कैसे सो जाऊँ,
वो बेच रहे अरमानों को, खामोश मैं कैसे हो जाऊँ,
हाँ मैंने कसम उठाई है, हाँ मैंने कसम उठाई है

मैं देश नहीं बिकने दूंगा, सौगंध मुझे इस मिट्टी की,
मैं देश नहीं मिटने दूंगा, मैं देश नहीं मिटने दूंगा, मैं देश नहीं झुकने दूंगा।

वो जितने अंधेरे लाएंगे, मैं उतने उजाले लाउंगा
वो जितनी रात बढ़ाएंगे, मैं उतने सूर्य उगाऊँगा
इस छल फरेब की आँधी में, मैं दीप नहीं बुझने दूंगा,
सौगंध मुझे इस मिट्टी की, मैं देश नहीं मिटने दूंगा,
मैं देश नहीं मिटने दूंगा, मैं देश नहीं झुकने दूंगा।

वो चाहते हैं जागे न कोई, ये रात ये अंधकार चले,
हर कोई भटकता रहे यूंही, और देश यूंही लाचार चले,
पर जाग रहा है देश मेरा, पर जाग रहा है देश मेरा,
हर भारतवासी जीतेगा, हर भारतवासी जीतेगा,
मांओं बहनों की अस्मत पर, गिद्ध नज़र लगाए बैठे हैं
हर इंसां है यहां डरा-डरा, दिल में खौफ़ जमाए बैठे हैं
मैं अपने देश की धरती पर, अब दर्द नहीं उगने दूंगा
मैं देश नहीं रुकने दूंगा , सौगंध मुझे इस मिट्टी की,
मैं देश नहीं मिटने दूंगा, मैं देश नहीं झुकने दूंगा।

अब घड़ी फ़ैसले की खाई, हमने है कसम अब खाई
हमें फिर से दोहराना है, और ख़ुद को याद दिलाना है
ना भटकेंगे न अटकेंगे, कुछ भी हो इस बार
हम देश नहीं मिटने देंगे , सौगंध मुझे इस मिट्टी की,
मैं देश नहीं मिटने दूंगा, मैं देश नहीं झुकने दूंगा।

भक्ति का प्रकाश, जीवन का मार्गदर्शन

रामचंद्रजी की आरती

श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भव भय दारुणम्।
नवकंज लोचन कंज मुखकर, कंज पद कन्जारुणम्।।

कंदर्प अगणित अमित छवी नव नील नीरज सुन्दरम्।
पट्पीत मानहु तडित रूचि शुचि नौमी जनक सुतावरम्।।

भजु दीन बंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनम्।
रघुनंद आनंद कंद कौशल चंद दशरथ नन्दनम्।।

सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारू अंग विभूषणं।
आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खर-धूषणं।।

इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।
मम ह्रदय कुंज निवास कुरु कामादी खल दल गंजनम्।।

मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरों।
करुना निधान सुजान सिलू सनेहू जानत रावरो।।

एही भांती गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषी अली।
तुलसी भवानी पूजि पूनी पूनी मुदित मन मंदिर चली।।

दोहा- जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल वाम अंग फरकन लगे।।

भक्ति का प्रकाश, जीवन का मार्गदर्शन

श्री हनुमान जी की आरती

आरती कीजै हनुमान लला की ।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥
जाके बल से गिरवर काँपे ।
रोग-दोष जाके निकट न झाँके ॥
अंजनि पुत्र महा बलदाई ।
संतन के प्रभु सदा सहाई ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥

दे वीरा रघुनाथ पठाए ।
लंका जारि सिया सुधि लाये ॥
लंका सो कोट समुद्र सी खाई ।
जात पवनसुत बार न लाई ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥

लंका जारि असुर संहारे ।
सियाराम जी के काज सँवारे ॥
लक्ष्मण मुर्छित पड़े सकारे ।
लाये संजिवन प्राण उबारे ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥

पैठि पताल तोरि जमकारे ।
अहिरावण की भुजा उखारे ॥
बाईं भुजा असुर दल मारे ।
दाहिने भुजा संतजन तारे ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥

सुर-नर-मुनि जन आरती उतरें ।
जय जय जय हनुमान उचारें ॥
कंचन थार कपूर लौ छाई ।
आरती करत अंजना माई ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥
जो हनुमानजी की आरती गावे ।
बसहिं बैकुंठ परम पद पावे ॥
लंक विध्वंस किये रघुराई ।
तुलसीदास स्वामी कीर्ति गाई ॥

आरती कीजै हनुमान लला की ।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥
॥ इति संपूर्णंम् ॥

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